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APNS-292
"परिपक्व प्रेम की कविता"
सालों की धूप, छांव में ढला,
ये प्रेम अब चिंगारी नहीं रहा।
अब न वो हड़बड़ी है, न लज्जा की परतें,
सिर्फ सच्चाई है—निर्वस्त्र, बिना कोई पर्दा।
पहले जो निगाहें चुराया करते थे,
अब आँखों में गहराइयाँ तैरती हैं।
वो चुम्बनों की ताजगी तो अब भी है,
पर हर स्पर्श में इतिहास की परछाइयाँ हैं।
शब्दों से आगे बढ़ा है ये संबंध,
जहाँ मौन भी पूरी कविता बन जाता है।
जहाँ रात की चुप्पियाँ, सवेरे की हँसी,
सब कुछ एक दूजे के लिए गीत हो जाता है।
न वो जवानी का उतावलापन है,
न वासना की सिर्फ आग है,
यहाँ स्पर्शों में संवाद है,
और मौन में भी अनुराग है।
तेरे शरीर की लकीरें अब भी मोहित करती हैं,
पर अब मैं उन्हें सिर्फ देखने नहीं,
समझने लगा हूँ—
तेरे दर्द, तेरे संघर्ष,
तेरी खामोशियों की जुबान पढ़ने लगा हूँ।
जब तू मेरी बाहों में आती है,
तो सिर्फ प्रेमिका नहीं,
मेरे अधूरे हिस्सों की साथी बन जाती है।
तेरा शरीर नहीं अब सिर्फ आकर्षण है,
बल्कि एक मंदिर है,
जहाँ मैं अपने अस्तित्व को समर्पित करता हूँ।
तेरे स्तनों पर सिर रखकर
अब चैन की नींद आती है,
किसी अधूरी कविता की तरह
हर रात तू पूरी हो जाती है।
हम अब भी प्रेम करते हैं,
पर नाटकीयता से नहीं—
एक आदत की तरह,
जैसे सुबह की पहली चाय,
जैसे पुराने तकिए की खुशबू।
तेरी झुर्रियाँ अब भी मोहक हैं,
वो आंखों के कोनों की रेखाएं,
जैसे वक्त की लिपि में लिखा
हमारा सम्पूर्ण इतिहास।
प्रेम अब एक युद्ध नहीं रहा,
जिसमें जीतनी होती हो एक देह।
अब ये एक संधि है—
जहाँ दोनों पक्ष शांति से रहते हैं,
एक-दूसरे के दुःख को
बिना कहे साझा करते हैं।
हां, हम अब भी नग्न होते हैं,
पर सिर्फ शरीर से नहीं,
भावनाओं से, मन से,
एक-दूसरे के आगे बिना परदे के खड़े।
तेरा थका हुआ चेहरा,
मेरी सुबह की प्रेरणा है।
तेरी उदासी, मेरे गीत की तान है।
और तेरा हँसना—
जैसे किसी पुराने रेडियो पर
अचानक बज जाए कोई पसंदीदा ग़ज़ल।
हमने समय के साथ चलना सीखा,
रात की भूख में भी
एक-दूसरे को बाँहों में भरना सीखा।
जहाँ कामुकता अब कर्तव्य नहीं,
एक समर्पण है, एक विश्राम है।
हमारी उम्रें बढ़ी हैं,
पर प्रेम में परिपक्वता आई है।
वो पुराना उन्माद अब भी कहीं है,
पर अब वो स्थिरता की चादर में लिपटा है।
हम अब भी एक-दूसरे को छूते हैं,
पर उद्देश्य अब अलग है—
सिर्फ भोग नहीं,
बल्कि उपस्थिति का आश्वासन।
तेरे नाखूनों की खरोंचें
अब भी मेरी पीठ पर निशान छोड़ती हैं,
पर अब वो पीड़ा नहीं देतीं,
बल्कि याद दिलाती हैं कि
हम अब भी जीवित हैं,
और प्रेम अब भी बहता है हमारी नसों में।
तेरी सांसों की गर्मी
अब भी मेरे होंठों पर उतरती है,
पर अब वो एक चिन्ह बन गई है—
कि तू आज भी मेरी है,
कल की तरह, पर और भी गहराई से।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ,
कि जवानी का प्रेम आसान था—
परिपक्व प्रेम में जो गहराई है,
वो शायद किसी मौसम में नहीं मिलती।
हम अब भी एक-दूसरे को देखते हैं
बिना कहे सब कुछ कह देते हैं,
कभी एक स्पर्श, कभी एक गंध,
और कभी सिर्फ मौन में बहते हैं।
आज जब तू पास लेटी है,
तेरे बालों में सफेदी की चांदनी है,
तेरी देह अब भी मुझे बुलाती है—
पर अब वो एक रात नहीं मांगती,
बल्कि पूरा जीवन चाहती है।
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