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Post-07 My Girlfriend Mom

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कस्तूरी-सी वह रात

तुम्हारी साँसों की गर्माहट में,
मैंने सदीयों की तपिश को महसूस किया।
वो आँखों का टकराना,
जैसे कोई आग से खेल रहा हो।

शब्द तो बहुत कहे हमने,
पर जो मौन था,
वो सबसे ऊँचा चिल्लाया।
तेरे बदन की खुशबू में,
जैसे हवाओं ने इश्क़ करना सीख लिया।

रात गवाही थी,
एक-एक कपड़े के गिरने की ध्वनि
जैसे कोई सितार झंकृत हुआ हो।
तुम्हारे स्पर्श में
न जाने कितनी कविताएँ घुल गईं।

कमरे की दीवारें शर्म से लाल थीं,
और छत ने चुपचाप
हमारे आलिंगन को थामे रखा।
मैंने तुम्हें ओढ़ लिया था उस रात,
बिना किसी लिहाज, बिना किसी दूरी के।

तेरी उंगलियों का सफ़र मेरी पीठ पर
जैसे कोई चित्रकार कैनवास पर ब्रश चला रहा हो।
हर स्पर्श एक कविता,
हर आलिंगन एक अध्याय।

वासना और प्रेम का भेद उस रात मिट गया था,
हम सिर्फ़ शरीर नहीं थे,
हम आत्माएँ बनकर एक-दूजे में समा गए थे।
तुम्हारी धड़कनों ने मेरी छाती को बजाया,
जैसे कोई वायलिन सबसे मधुर राग छेड़ रही हो।

कुछ टूट रहा था उस क्षण,
शायद अहंकार, शायद समय, शायद हम खुद।
हम न स्त्री थे, न पुरुष,
बस एक लहर थे जो अपनी ही गहराइयों में डूबने को तैयार थी।

तुमने मेरी कमर पर उँगलियाँ फिराईं,
जैसे किसी पुराने प्रेम पत्र पर कोई फिर से दस्तख़त कर रहा हो।
तुम्हारे होठों की नमी में,
मैंने अपने सूखे वर्षों को तृप्त किया।

ये प्रेम नहीं था केवल,
ये भूख थी आत्मा की,
जो तुम्हारे चुम्बनों में रोटी-सी भर गई।

कई बार तुमने मेरा नाम पुकारा,
पर हर बार उस नाम के पीछे
एक नई स्त्री जाग उठी।
जो सिर्फ़ तुम्हारी थी,
तुम्हारी साँसों से बनी,
तुम्हारे प्यार से पिघली।

रात बढ़ती रही,
हम भी बढ़ते रहे—
दिव्य से देह में,
देह से दिव्यता में।
एक नशा था,
पर शराब नहीं,
एक प्यास थी,
पर पानी से नहीं बुझने वाली।

तुमने मुझे अपनी बाँहों में बाँध लिया,
जैसे कोई नदी अपने किनारों को समेट ले।
हमारे बीच जो कुछ भी था,
वो सिर्फ़ लिप्साओं का खेल नहीं,
एक यज्ञ था,
जिसमें हमने स्वयं को आहुति दी।

सुबह जब आई,
तुम्हारे बाल मेरे सीने पर बिखरे थे,
जैसे कोई कविता अपनी सबसे सुंदर पंक्ति
अधूरी छोड़ गई हो।
हमने कुछ नहीं कहा,
बस मुस्कुराए,
क्योंकि शब्द अब छोटे लगने लगे थे।

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