Skip to main content

Featured

Post-87 JUFE-445

 JUFE-445

Post-44 MOND-233

 MOND-233










कहानी अधूरी लहरों की


रात की चुप्पियों में, जब सांसें धड़कती हैं,

तेरी यादों की महक, जैसे जुगनू सी चमकती हैं।

मेरे बिस्तर की सिलवटों में,

तेरी उंगलियों की छाप है,

तेरे होंठों की आहट,

अब भी मेरे कानों में ताजातरीन है।


जब तू पास होता था,

तो हर लम्हा गुनगुनाता था,

तेरे स्पर्श की गर्मी,

सर्द हवाओं को भी शरमा देती थी।

तेरी आँखों में जो गहराई थी,

वो सिर्फ झील नहीं थी—वो एक समुंदर था,

जिसमें मैं हर रात डूबती रही।


तू कहता था,

"इश्क सिर्फ जज़्बात नहीं होता,

ये एक आग है,

जो हर पल सुलगती है,

हर छुअन में चिंगारी छोड़ जाती है।"


मैं मुस्कराती थी—क्योंकि सच था ये।

तेरा स्पर्श, तेरी बातों की नमी,

तेरे होंठों का रुखापन,

सब कुछ कविता जैसा था—

नरम भी, तीखा भी।


हमने इश्क़ को जीया था,

किसी रेशमी पर्दे की तरह

जिसमें लिपटी थी रातें,

और उजालों में भी तन्हाई गूंजती थी।

हम एक-दूसरे को पढ़ते थे,

जैसे किताबें नहीं, जिस्म की इबारतें हों।


तेरी साँसें, मेरी सांसों के साथ सुर में चलती थीं,

तेरा जिस्म, मेरे जिस्म के साथ धीमे-धीमे कहानी कहता था।

हमने कई बार चाँदनी को चुपचाप देखा था,

जैसे वो भी गवाह हो हमारे मिलन का,

जैसे वो जानती हो हर उस स्पर्श की भाषा,

जो शब्दों से परे होती है।


हमारे रिश्ते में न शर्म थी, न संकोच,

था तो बस खुलापन—एक आत्मिक नग्नता।

तेरी बाँहों में खुद को भूल जाना,

तेरे कंधे पर सिर रख कर रो लेना,

तेरे सीने में छिपी धड़कनों को

अपना नाम दे देना—

यही तो इश्क़ था हमारा।


पर वक्त ने दस्तक दी,

और ख्वाब बिखर गए।

तू चला गया, कुछ कहे बिना।

मुझे बस उस चादर की सिलवटें रह गईं,

जिनमें अब भी तेरा गर्मी भरा एहसास बसा था।


आज भी जब रात होती है,

तो मैं अपनी पीठ पर

तेरे स्पर्श की परछाइयों को महसूस करती हूँ।

तेरी साँसों की गंध

अब भी मेरे तकिए में छुपी है।

कभी-कभी खुद से पूछती हूँ,

क्या वो सब ख्वाब था?

या फिर एक ऐसा हक़ीक़त,

जो सिर्फ रातों में लौट कर आता है?


तेरी यादें अब भी

मेरे जिस्म की गलियों से गुजरती हैं।

मैं अब भी उनींदी रातों में

तेरे नाम की लौ जलाती हूँ,

हर उस अधूरे एहसास को

फिर से महसूस करती हूँ।



---


तेरे बाद कोई नहीं छू पाया मुझे वैसे—

किसी ने चाहा ज़रूर,

पर वो एहसास नहीं था।

तेरी उंगलियों में जो जादू था,

वो अब भी अधूरा है।

मैं आज भी प्यासा हूँ—

न जरा से चुम्बन की,

बल्कि उस आत्मिक जुड़ाव की,

जो सिर्फ तू समझ पाया था।



---


हर मिलन में अब एक साया होता है,

तेरी याद का।

हर स्पर्श में एक तुलना होती है,

तेरे पहले और बाद की।

मैं हँसता हूँ, जीता हूँ,

पर तेरे बिना अधूरा हूँ।



---


इश्क़ का ये वयस्क रूप,

जैसे मदिरा का नशा हो,

धीरे-धीरे चढ़ता है,

और फिर पूरी आत्मा को डुबो देता है।



---


समाप्त


क्या आप चाहते हैं कि मैं इस कविता को एक पीडीएफ या इमेज फ़ॉर्मेट में बदल दूँ या इसका रचनात्मक विश्लेषण भी करूँ?


Comments

Popular Posts