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Post-39
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काँच की दीवारें
चाँदनी रात में तन्हा बैठा,
तेरे नाम की खुशबू लहराई,
तेरे होने की हल्की आहट,
मेरे तन–मन तक पहुँच आई।
कभी जो पास बैठती थी,
वो साँसें अब भी महसूस होती हैं,
तेरे स्पर्श की नर्मी जैसे
रूह के भीतर उतरती होती हैं।
तेरे होंठों की खामोशी में,
हजारों अधूरी बातें थीं,
तेरी पलकों के झुकते ही,
हमारे ख्वाब सजते जाते थे।
कभी किताबों की आड़ में,
तेरा हौले से मुस्कुराना,
मेरे सीने में आग लगाता,
फिर भी मन को भाता जाना।
तेरे बालों की जुल्फें जब,
मेरे चेहरे को छू जाती थीं,
वो लम्हें जैसे रुक जाते थे,
और साँसें उलझ सी जाती थीं।
हर एक मुलाक़ात में
कुछ अनकहे इरादे थे,
तेरी नजरों की भाषा में
बेहिसाब वादे थे।
शरीर की नहीं, आत्मा की
भूख थी इस रिश्ते में,
तेरे पास होने से
जिंदगी में रवानी थी।
तेरा छूना जादू जैसा,
धीरे-धीरे आत्मा तक घुलता था,
कोई हदें न थीं उस पल,
सिर्फ एहसासों का सिलसिला चलता था।
जब पहली बार तू करीब आई,
सांसें उलझ गईं धड़कनों में,
तेरे होंठों की छुअन ने
लिख दी दास्तान पलों में।
वो रातें जो हमने साथ बिताई,
शब्दों से परे थीं,
जहाँ तन और मन
एक रूह में बहते थे।
तेरे बदन की खुशबू से
मेरा कमरा महकता था,
तेरे नाम की सरगोशी में
मेरा मन भी थिरकता था।
हमने प्यार को सिर्फ़ छुआ नहीं,
जीया था उसे पूरी तरह,
हर एहसास, हर छुअन
जैसे पूजा हो किसी देवता की तरह।
मगर फिर वक्त बदल गया,
तेरी बाहों की गर्मी भी ठंडी पड़ी,
तेरे होंठों की आग
अब राख में बदल गई बड़ी।
रिश्ते की दीवारें दरक गईं,
वो रातें भी अब खामोश हैं,
कभी जो चीखती थीं चाहतों से,
आज सिसकती हैं कहीं भीतर।
मगर फिर भी जब चाँद निकलता है,
तेरी यादों की सिलवटें जागती हैं,
एक साया सा गुजर जाता है,
तेरे स्पर्श की छाप छोड़ जाता है।
प्यार सिर्फ़ जिस्म नहीं होता,
ये बात अब समझ आई,
वो जो आँखों में उतरता है,
वो ही तो सच्चा साया बन पाई।
आज भी जब खुद से बातें करता हूँ,
तेरी आवाज़ गूंजती है,
तेरा नाम अब भी अधरों पर,
एक दुआ बनकर रुकती है।
मैं जानता हूँ, ये अधूरा है,
पर शायद कुछ अधूरा ही सुंदर होता है,
वो मिलन जो कभी पूरा ना हुआ,
वही सबसे गहरा होता है।
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