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Post-34 MIGD-530
Post-34 MIGD-530
"रात की परतों में"
रात की परतों में कुछ ख़ामोशियाँ थीं,
तेरी साँसों की तपिश, और मेरी बेचैनियाँ थीं।
वो आँखों से कह देना, और लबों का चुप रह जाना,
बातें बहुत थीं, पर इशारों में ही सब बयाँ था।
चाँद की हल्की चाँदनी, तेरे बदन पर गिर रही थी,
जैसे कोई पुराना गीत, फिर से जी उठी थी।
तेरी उँगलियों की हरकत, मेरे सीने पर कोई श्लोक बुनती थी,
और मेरी धड़कनें, उन छंदों को पाठ की तरह पढ़ती थीं।
ये कोई पहली मुलाक़ात नहीं थी,
पर हर बार जैसे नई लगती थी।
तेरा माथा चूम लेना, फिर बालों में हाथ फिराना,
ये सब कोई शारीरिक इच्छा नहीं,
बल्कि आत्मा का आत्मा से मिल जाना था।
तू जब मेरी बाहों में सिमटती,
दुनिया के सारे सवाल थम जाते।
न धर्म था, न जात, न रीत, न नीति,
बस हम थे—प्यार की एक आदिम परिभाषा।
तेरे होंठों की गर्माहट में,
कोई कविता जल रही थी,
और मेरी पलकों पर—
उस कविता की राख गिर रही थी।
रात के अंधेरे में, जिस्म जब पिघलते हैं,
तो आत्माएँ एक-दूसरे के हिस्सों में उतरती हैं।
कोई वासना नहीं, बस एक आत्मीयता थी,
जो हाड़-मांस के परे जाकर जुड़ रही थी।
तू जब थककर मेरी छाती पर सोती थी,
तेरा माथा मेरे दिल की धड़कनों से संवाद करता था।
मैं भी, उन स्पंदनों के ज़रिये,
तेरे हर सपने में दाख़िल हो जाता था।
कभी-कभी लगता,
क्या ये प्यार है या पूजा?
क्योंकि जब तुझे छूता हूँ,
तो खुद को पवित्र अनुभव करता हूँ।
तू मेरी प्रार्थना की अंतिम पंक्ति है,
जहाँ शब्द ख़त्म होते हैं,
और सिर्फ़ भावना शेष रहती है।
हां, हमारी रातें शारीरिक भी हैं,
पर उस शरीर में आत्मा की रोशनी है।
तेरा जिस्म सिर्फ़ देह नहीं,
एक जीवंत कविता है,
जिसे मैं हर रात पढ़ता हूँ—
अक्षर दर अक्षर, स्पर्श दर स्पर्श।
जब तू कहती है—
"थोड़ा और पास आओ",
तो लगता है जैसे
जगह की नहीं, समय की दूरी मिट रही है।
हम दोनों अपने बीते कल के घाव लिए
एक-दूसरे के वर्तमान में सहलाते हैं,
और हर चुम्बन के साथ
थोड़ा-थोड़ा खुद को ठीक करते हैं।
ये प्रेम—वो वाला नहीं जो
कविता की किताबों में पढ़ा,
बल्कि वो—जो
पसीने की गंध, अश्रुओं की नमी,
और निःशब्द स्वीकृति में बसा है।
तेरी पीठ पर मेरी उँगलियों की लकीरें
कोई वासना नहीं,
बल्कि बीते जीवन की कहानियाँ हैं,
जो मैंने तेरे भीतर संजो दी हैं।
और जब तू सुबह उठकर
मुझमें समाई रहती है,
तो सूरज भी ईर्ष्या करता होगा,
तेरे चेहरे की चमक से।
हमारा संबंध सीमित नहीं—
न उम्र से, न समय से,
न समाज की परिभाषाओं से।
यह एक साझेदारी है—
दो पूर्ण व्यक्तित्वों की,
जो एक-दूसरे को अधूरा नहीं,
पूरा महसूस कराते हैं।
रात की परतों में जो प्रेम लिखा गया,
वो दिन की रौशनी में भी चमकता है।
वो सारा रोमांच, सारा स्पर्श,
अब हमारे बीच विश्वास बन चुका है।
न कोई वादा, न कोई कसम,
बस एक स्वीकृति है—
कि मैं तेरा हूँ, तू मेरी है,
हर उस रूप में जिसमें
इच्छा और आत्मा साथ चलती हैं।
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