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Post-22 GVH-528
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अधूरी रातों का सौदा
चुपचाप सी थी वो रातें,
जहाँ सांसें भी बेआवाज़ थीं,
तेरे मेरे दरमियाँ कुछ फासले थे,
पर आँखें आज़ाद थीं।
तेरी उँगलियाँ जब मेरी हथेलियों में उतरती थीं,
तो ज़िन्दगी पिघलती थी जैसे मोम,
हर छुअन में कोई भूला हुआ अफसाना था,
हर स्पर्श में थी कोई अनकही होम।
वो जिस्म की सरहदें,
जहाँ आत्माएँ टकराती थीं,
कभी सर्दियों की सुबह-सी ठंडी,
कभी जून की रात-सी पिघलती थीं।
हम इश्क़ को सिर्फ़ प्यार तक नहीं सीमित रखते थे,
हमने हर भावना को जिया था,
कभी बिस्तर की सिलवटों में,
कभी अल्फ़ाज़ के उलझे से धागों में बुन लिया था।
तेरी हँसी जब मेरे सीने से टकराती थी,
दिल की हर धड़कन, एक गीत हो जाती थी,
तेरे कंधों पर सिर रखकर,
जैसे पूरी दुनिया रुक सी जाती थी।
वो रातें जब शरीर नहीं,
आत्मा भी नग्न होती थी,
तू मेरे मन को पढ़ता था,
मैं तुझे बिना कहे महसूस करती थी।
कोई धर्म नहीं था हमारे बीच,
ना समाज की दीवारें थीं,
थी तो बस इक चाहत,
जो हर पल और गहरी होती गई थी।
तेरा नाम मेरे होंठों पर नहीं आता,
पर तेरा स्वाद अब भी ज़ुबान पर रहता है,
तेरे गले की गर्माहट,
अब भी मेरी नींदें चुरा लेती है।
रातों को जब नींद नहीं आती,
तेरी साँसों का संगीत याद आता है,
तेरा "बस और थोड़ा पास" कहना,
जैसे किसी मंदिर में आरती की घंटियाँ बजती हैं।
प्रेम सिर्फ़ शुद्ध नहीं होता,
वो जटिल भी होता है,
कभी पवित्रता में डूबा,
कभी वासना की लहरों में खोता है।
तेरे सीने की वो गर्मी,
जिसने मेरे भीतर की ठंड को पिघलाया,
और तेरी हर सिहरन ने,
मेरे अंतर्मन को छू कर जगाया।
क्या ये पाप था?
या बस दो परिपक्व आत्माओं का मिलन?
क्या ये वासना थी?
या उस प्रेम की अंतिम अभिव्यक्ति?
हम दोनों जानते थे,
हर स्पर्श में था इज़हार,
हर आलिंगन में छुपा था
एक छोटा सा संसार।
कभी आँखों के रास्ते उतरती थी प्यास,
कभी होठों से बूँद-बूँद बहती थी आस,
तेरे मेरे बीच ना कोई वादा था,
ना कोई बंदिश, ना कोई खास।
लेकिन फिर भी,
हर मिलन में था एक पूर्ण विराम,
एक ठहराव,
एक विस्मय,
जैसे ब्रह्मांड का कोई रहस्य खुल गया हो।
तू चला गया शायद,
या मैं ही खो गई उन रातों में,
पर अब भी जब आईना देखती हूँ,
तेरी उँगलियों के निशान दिखते हैं।
अब भी जब बारिश गिरती है,
तेरे होंठों की नमी महसूस होती है,
अब भी जब चादर ओढ़ती हूँ,
तेरा नाम उसमें बुन जाता है।
मैं जानती हूँ ये कविता
शब्दों में सब नहीं कह सकती,
पर शायद तुम समझ जाओगे
अगर कभी अपनी आँखों से पढ़ोगे।
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