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"रात की रूह में तुम"


रात की रूह में घुला है तुम्हारा नाम,

जैसे धीमी बारिश में भीगती हो कोई पुरानी शाम।

तुम्हारी आँखों का वो जादू,

जैसे चाँदनी में भी जलते हों दीये,

जिसे छूने की ख्वाहिश,

हर बार शब्दों से आगे निकल जाती है।


तुम्हारे होंठों की वो खामोशी,

जो कह देती है हज़ार बातें,

सिर्फ़ एक मुस्कान में,

बिना कुछ कहे, बिना कुछ सुने।

मैं उन लम्हों में जीता हूँ,

जहाँ सिर्फ़ तुम होती हो और मैं,

एक-दूजे की साँसों में खोए हुए।


तुम्हारे बालों की वो महक,

जो मेरे ख्यालों तक पहुँच जाती है,

जब तुम पास नहीं होती,

तब भी हर हवा तुम्हारी खुशबू लेकर आती है।

वो गले लगना —

न सिर्फ़ बदन से, बल्कि रूह से जुड़ जाना,

जैसे दो धड़कनों ने एक सुर में गुनगुनाना सीख लिया हो।


तुम्हारी उंगलियों का वो हल्का सा स्पर्श,

जिससे तन की सीमाएं भी पिघल जाती हैं,

और हम सिर्फ़ देह नहीं,

बल्कि दो आत्माओं की सज़ा बन जाते हैं।


कभी तुम मेरी बाँहों में चुप हो जाती हो,

कभी मेरी आहट से मुस्कुरा उठती हो,

कभी मेरी ख़ामोशी में अपनी आवाज़ ढूँढती हो,

और मैं हर बार तुम्हें खुद से ज़्यादा चाहने लगता हूँ।


वो रातें जब तुम मेरे पास सोती हो,

और तुम्हारा गर्म साँस मेरे सीने पर

कुछ लिखता है...

इश्क़, वासना, अपनापन —

सब एक ही शिला पर तराशा हुआ सौंदर्य लगते हैं।


कभी-कभी मैं तुम्हें देखता हूँ

बिना कुछ बोले,

जैसे कोई किताब पढ़ रहा हूँ

जिसका हर शब्द तुम्हारा चेहरा हो।


तुम्हारे कंधों पर सिर रख कर

जब मैं अपने टूटे लम्हों को जोड़ता हूँ,

तब समझ में आता है,

प्यार सिर्फ़ मिलना नहीं,

पिघलना भी है...

किसी की आँखों में

अपने होने को भुला देना भी है।


हमारे बीच जो नज़दीकियाँ हैं,

वो केवल शारीरिक नहीं,

वो तो उस मौन को भी समझती हैं

जिसे शब्दों ने कभी छुआ नहीं।


तुम्हारा शरीर —

एक कविता की तरह,

जिसके हर मोड़ पर

भावनाओं का विस्फोट होता है।

तुम्हारी चाल में जो मादकता है,

वो मेरे दिन के उजाले को भी

रात जैसा बना देती है।


जब तुम मेरी आँखों में देखती हो,

मैं अपने सारे सवाल भूल जाता हूँ।

तुम्हारा स्पर्श —

कोई उत्तर नहीं,

पर एक शांत स्वीकार है,

जो मेरे भीतर के तूफानों को थाम लेता है।


मैं चाहता हूँ,

हर सुबह तुम्हारी बाहों में आँख खुले,

और हर रात तुम्हारी साँसों के संगीत में

मेरा नाम गूँजता रहे।


कभी मैं तुम्हारी कमर पर हाथ रखता हूँ,

तो लगता है जैसे कोई प्यास

तुमसे होकर मुझ तक आती हो,

और फिर हम —

जैसे दो पिघलते हुए मोम,

एक लौ में समा जाते हैं।


हमारे बीच कुछ वर्जनाएँ टूटती हैं,

कुछ सीमाएँ मिटती हैं,

और उस एक क्षण में,

हम खुद को खोकर

एक दूजे में मिल जाते हैं।


तुम्हारे बिना सब अधूरा लगता है,

और तुम्हारे साथ सब कुछ

इतना पूरा कि कोई और इच्छा नहीं बचती।


तुम्हारी साँसों में जब

मेरा नाम बहता है,

मैं वक़्त को थाम लेना चाहता हूँ,

उसे वहीं रोक देना चाहता हूँ —

जहाँ तुम और मैं

एक धड़कन में धड़कते हैं।


तुम्हारा माथा चूमना

मेरे लिए इबादत है,

और तुम्हारे होठों से

प्यार की कविता चुराना,

मेरे होने की सबसे खूबसूरत वजह।


ये कविता —

सिर्फ़ शब्दों में नहीं,

तुम्हारे स्पर्श, तुम्हारी हँसी,

तुम्हारी सिहरन और

हमारे बीच बहती उस अदृश्य नदी में भी है।


तुम हो —

तो सब कुछ है।

तुम्हारे बिना —

मैं एक अधूरी कविता हूँ,

जिसे सिर्फ़ तुम्हारे नाम से मुकम्मल होना है।



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