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काँच सी रातें, आग सा तन


काँच सी रातें थीं, चुप-चुप से लम्हे,

तेरी साँसों की सरगम में, कुछ अनकहे ग़म थे।

चाँदनी बिखरी थी बिस्तर पे जैसे,

तेरे बालों की छाँव में, सिहरता मैं बस वैसे।


तेरे होंठों की गरमी, और आँखों की प्याली,

इश्क़ की शराब थी, या कोई पुरानी स्याही?

हर शब्द में तेरे, एक जादू सा बहता,

मदहोशियों के बीच, मेरा नाम तू कहता।


बाहों में तेरी, लिपटी थी रातें,

नग्न सच के पास थीं, सारी सौगातें।

तन की बात नहीं थी, रूह भी कांपी थी,

तेरे हर स्पर्श से जैसे आत्मा थामी थी।


तू चुप थी मगर तेरे शरीर की भाषा,

मेरे पोर-पोर में भरती थी आशा।

तेरी उँगलियों की हरकत, साज थी कोई,

और मैं एक राग, जो अधूरा था कभी।


इच्छाओं की आग में, जलते दो बदन,

पर मन फिर भी खोजे, शब्दों का संगम।

यह केवल वासना नहीं, यह प्रेम था गहरा,

जिसमें हर रात ढलती थी सुबह का पहरा।


हमने चाहा नहीं, बस बह गए उस बहाव में,

ना सोच था, ना रोक थी, उस स्वाभाव में।

तेरी पलकों की छाँव में, मैं रुक गया था,

जैसे जन्मों का इंतज़ार थम गया था।


सिर्फ़ जिस्म से नहीं, तू दिल में उतर गई,

मेरे सारे प्रश्नों की, बस तू उत्तर गई।

तेरे पसीने की महक में, वो बात थी,

जो किसी इत्र में भी नहीं, वो सौगात थी।


कभी तू मेरी बाँहों में, एक कविता सी बहती,

कभी तू चीखों में भी, मधुर राग कहती।

तेरी वो कसक, वो धीमी आहें,

मानो इश्क़ की कोई खोई हुई राहें।


कपड़े गिरते रहे, जैसे परतें आत्मा की,

हर चुम्बन में छिपी, कहानी थी पुरानी सी।

तेरे नाखूनों की खरोंच, ज्यों दस्तखत थे,

मेरे जिस्म पर तेरा नाम जैसे सच्चे वचन थे।


हम दो लोग नहीं, दो ब्रह्मांड टकरा गए थे,

तू मेरी नसों में, मैं तेरी धड़कनों में समा गए थे।

सिर्फ़ रातों की बात नहीं थी ये,

हमारे बीच कुछ और भी जीवित था, जो रात से परे था।


एक बेचैनी थी, एक संतोष भी,

एक ज्वाला थी, और ठंढक भी वही थी।

हम एक-दूसरे को जानने की कोशिश में,

ख़ुद को खोते गए, और फिर पाते गए।


यह कविता नहीं, हमारा मिलन था,

प्रेम की वो अवस्था, जब वाणी मौन थी, और शरीर गूंजता।

हर दिन की थकन, रात के बिस्तर पे सुला दी,

और तूने अपने स्पर्श से मेरी रूह जगा दी।


तेरे जाने के बाद, बिस्तर भी रोया,

तकिया अब भी तेरी खुशबू में खोया।

वो कमरा, वो दीवारें, वो आईना सब,

तेरे साथ जीए, तेरे बिना सब खामोश अब।


आज भी कभी अगर वो रात लौट आए,

तेरे साथ बिताए लम्हे फिर जाग जाएं।

तो मैं न कहूँगा कुछ, न तू कुछ बोलना,

बस एक बार फिर, वही स्पर्श दोहराना।


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