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"चुप्पियों की चीख"

(एक प्रौढ़ कविता)

चुपचाप सी खामोशी में,
कुछ अधूरे से ख्वाब हैं,
बिस्तर की सिलवटों में,
लिपटे हुए जवाब हैं।

जिस्म से रूह की दूरी तक,
सांसों की सरहदें जाती हैं,
आँखों में जो उतरती हैं,
वो रातें कुछ कह जाती हैं।

ये जो छूते हैं तेरे अल्फाज़,
ये तो बस बहाना है,
हकीकत तो वो लम्हा है,
जो दिल को चुरा लाना है।

अधजली सिगरेट की तरह,
रिश्ते भी बुझते जाते हैं,
थोड़ा धुआँ, थोड़ी जलन,
फिर राख में सिमट जाते हैं।

तेरे काँधे की वो नरमी,
अब तक मेरी नींदों में है,
तेरी उँगलियों की हरकत,
अब भी मेरी पीठों में है।

जब तू बोलता नहीं,
तब भी तेरी आवाज़ सुनता हूँ,
तेरे न होने की आहट से,
हर रात बुनता हूँ।

कपों की चाय में उबाल नहीं,
पर यादें खौलती रहती हैं,
तेरे होंठों की चुप्पी में,
कहानी बोलती रहती है।

बंद दरवाज़ों के पीछे,
कुछ अनकहे एहसास हैं,
तू पास नहीं फिर भी,
तेरे साए मेरे पास हैं।

जिस्मों की पहचान से आगे,
रूहों का मेल भी होता है,
तूने जो मेरी साँसों को छुआ,
तो खुद को भी खोता है।

देर रात की करवटों में,
तेरी खुशबू ठहर जाती है,
तकिये के कोने में छिपी,
तेरी आहट बिखर जाती है।

ये जो प्रेम है, ये सरल नहीं,
कभी सज़ा, कभी इनाम है,
कभी अधूरा आलिंगन,
तो कभी तृप्ति का नाम है।

तेरी आँखों की नमी में,
मेरा ही चेहरा दिखता है,
तेरे दर्द के भीतर भी,
मेरा ही साया टिकता है।

हम साथ नहीं फिर भी,
रूहों की चाल एक है,
जिसे तू माने न माने,
मेरा हर सवाल एक है।

कभी नंगापन तन का नहीं,
भावों का होता है,
कभी स्पर्श से नहीं,
केवल मौन से भी प्रेम होता है।

तेरा न होना भी कुछ यूँ है,
जैसे सन्नाटे में शोर हो,
तेरा साथ न होते हुए भी,
हर कोना तुझसे भरपूर हो।

कभी सोचता हूँ पूछूँ तुझसे,
क्या अब भी तुझे नींद आती है?
या फिर मेरी तरह ही,
तेरी भी रातें जग जाती हैं?

तेरा शहर बदल गया,
मेरा पता वही है,
पर अब वहाँ तू नहीं,
तेरी यादें हैं, तन्हाई है।

रिश्ते अब उम्र नहीं माँगते,
बस समझदारी माँगते हैं,
और कुछ चुपचाप लम्हे,
जो सिर्फ़ आंखों से मांगे हैं।

जिस दिन तूने मुझे देखा था,
वो दिन अब तक रुका हुआ है,
कपड़ों के पीछे की त्वचा,
अब तक उसी पल में सिला हुआ है।

मोहब्बत अब भी वही है,
शायद और भी गहरी है,
जिसे उम्र का लिहाज़ नहीं,
बस इज़्ज़त की ज़रूरत है।

मैंने तुझे चाहा भी वैसे,
जैसे खुद को ही भुला दिया,
हर बार जब तू पास आया,
मैंने खुद को ही पा लिया।

अब भी जब कोई छूता है,
तेरे जैसा कुछ ढूंढता हूँ,
तेरी बातों की सी गर्मी में,
हर सर्द लम्हा बुनता हूँ।

शब्द नहीं, बस अनुभूति थी,
तेरे साथ जीने की,
हर पल एक कविता थी,
हर रात एक कहानी थी।

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