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"तेरी बाँहों में मौसम बदलते हैं"

तेरी बाँहों में सिमटते ही,
जैसे हर मौसम रुक जाता है,
धूप भी तेरी गर्मी से शर्मा कर,
धीरे-धीरे उतर जाती है।

तेरी उँगलियों की थरथराहट,
मेरी रूह में कोई गीत गुनगुनाती है,
तेरी आँखों की नमी से,
मेरे होंठ भी भीग जाते हैं।

तेरी छुअन जब भटकती है,
मेरी पीठ की निर्जन राहों पर,
हर रोया, हर मोड़,
तेरी दुआओं का फूल बन जाता है।

तेरे होंठों की मद्धम आंच से,
मेरे सपनों का तन जलता है,
तेरे गालों की गुलाबी रेखाओं पर,
मैं अपनी रातें उकेरना चाहता हूँ।

तेरी साँसों का समंदर,
मेरे सीने से टकराता है,
तेरी पलकों की छाँव में,
हर थकी हुई शाम मुस्कुराती है।

तेरी कमर की तंग गलियों में,
मैं खो जाना चाहता हूँ,
तेरे जुल्फों के अंधेरे में,
अपनी सुबहें भूल जाना चाहता हूँ।

तेरी देह की सतरंगी सूरत,
मेरी कविता में बहने लगती है,
तेरी हर गहरी आह,
मेरे गीतों को पंख दे जाती है।

तेरी छाती की गरमी में,
हर जमी हुई उम्मीद पिघलती है,
तेरे नाम की लहरें उठती हैं,
मेरी रग-रग में दौड़ती हैं।

तेरा आलिंगन एक मंदिर है,
जहाँ मेरी पूजा अधूरी नहीं रहती,
तेरी मुस्कान एक आकाश है,
जहाँ मेरी उड़ान रुकती नहीं।

तेरे गीले होठों पर,
अपने शब्द रखकर सो जाना चाहता हूँ,
तेरे बदन की धड़कनें पढ़ते-पढ़ते,
हर ग्रंथ को भुला देना चाहता हूँ।

तेरे जिस्म की वह गर्म राहें,
जहाँ प्रेम गुम हो जाता है,
तेरे उरोजों की नर्म घाटियाँ,
जहाँ सांसें उलझ जाती हैं।

तेरे नाज़ुक कदमों की आहट पर,
मेरी चाहतें रक्स करने लगती हैं,
तेरी लहराती हँसी में,
मेरे हर ग़म का पानी सूख जाता है।

तेरे तन की वो मृदु थकान,
मेरे माथे की शिकन मिटा देती है,
तेरी पीठ की हर लकीर में,
मैं अपना इश्क़ बुनना चाहता हूँ।

तेरे रोम-रोम से फूटता है,
एक अनकहा प्रेम का इत्र,
जिसे मैं साँसों में भरकर,
अपना वजूद भी ताज़ा करना चाहता हूँ।

तेरे बिस्तर के उन सलवटों में,
जहाँ तू रात को बिखरती है,
मैं अपनी आत्मा की थकावट,
तेरे तकिये पर छोड़ आना चाहता हूँ।

तेरी आँखों की नशा सी खुमारी,
मेरी सोचों को चुरा ले जाती है,
तेरी उँगलियों की मुस्कान से,
मेरे गुनाह भी धुल जाते हैं।

तेरी देह पर बिछी चाँदनी में,
मैं अपनी कविताएँ लिखना चाहता हूँ,
तेरे श्वासों की नर्म रेखाओं पर,
अपने सपनों की नाव तैराना चाहता हूँ।

तेरे होंठों की लहरों में,
खुद को पूरी तरह डुबो देना चाहता हूँ,
तेरे जज़्बातों के समंदर में,
हर किनारा भूल जाना चाहता हूँ।

तेरे साथ बिताए हर पल में,
कोई दुआ खुद-ब-खुद कबूल होती है,
तेरे आगोश की घड़ी में,
जिंदगी की हर घड़ी अमर हो जाती है।

तेरी मूक स्वीकृति में,
मेरी सबसे बड़ी जीत है,
तेरी साँसों की कसमसाहट में,
मेरा सबसे सच्चा प्रेम गीत है।

तेरे जिस्म के उस गुप्त कोने में,
जहाँ सिर्फ सच्चाई रहती है,
मैं खुद को निःशब्द समर्पित कर देना चाहता हूँ।

तेरी आत्मा की उस गरमाहट में,
जहाँ प्रेम भी निर्वस्त्र होकर आता है,
मैं हर बार खुद को खो देना चाहता हूँ।

तेरे साथ इस रात के सन्नाटे में,
जहाँ सिर्फ धड़कनें बोलती हैं,
मैं तेरी छाती पर सिर रखकर,
अपनी आखिरी साँस तक सो जाना चाहता हूँ।

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