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Post-07 StepDaughter Caught Stepdad Cheating

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"रात की रागिनी"

चाँदनी बिखरी तेरे बालों में,
रात सिसकती रही मेरी ख्यालों में।
तेरी आँखों की शराब जब छलकी,
मैं डूब गया उन सवालों में।

तेरे होंठों की खामोशी ने
कुछ ऐसा कहा, जो लफ्ज़ न कह सके।
हवा की सरगोशियाँ बताती रहीं,
हम कितने करीब थे, फिर भी कुछ रह सके।

तेरी साँसों की गर्मी से
जैसे आग लग गई रूह तक,
जब तू पास आई थी चुपचाप,
दिल काँपा था, धड़कन थमी हर एक लम्हा तक।

तेरे नर्म हाथों का वो पहला स्पर्श,
जैसे बारिश की पहली बूँद हो सूखे तन पर।
और फिर वो लम्हे जो ठहर गए थे,
कभी कमर पर, कभी गले के उस घुमाव पर।

तेरी पायल की छन-छन में
मेरी रातें बसी थीं।
तेरे कपोलों की लाली में
मेरे दिन की सुबहें हँसी थीं।

तू जब हँसती थी आधी रात को,
वो हँसी मेरी नसों में दौड़ जाती थी।
तेरे गालों की छाया में
मेरी नींदें संवर जाती थीं।

तेरा बदन था कोई किताब जैसे,
हर पन्ने पर एक नई कहानी।
कभी अधूरी, कभी पूरी,
कभी धड़कनों से बयाँ, कभी जुबां से सुनी।

तेरे कंधों पर जब रखा था सिर,
तो सारी दुनिया धुँधली लगने लगी थी।
तेरी उँगलियों के इशारे पर
जैसे मेरी साँसें चलने लगी थीं।

वो पहली बार जब तू पास आई थी,
लब खामोश थे, मगर दिल गा रहा था।
तेरे जिस्म की खुशबू में कुछ ऐसा था,
जो मुझे धीरे-धीरे पिघला रहा था।

तेरा वह स्पर्श, नर्म और सधा हुआ,
जैसे चाँदनी का झरना हो ठंडी रात में।
जब तू थमी थी सीने से लगकर,
वो पल रुक गया था हर एक घड़ी में।

तेरी आँखें कहती थीं बहुत कुछ,
जैसे चुप रहकर भी पुकार रही हों।
और मेरे होंठ, जो थरथराते थे,
जैसे कोई रहस्य छिपा रहे हों।

हमने शब्दों से नहीं,
स्पर्शों से बात की थी उस रात।
तेरे और मेरे बीच
सिर्फ धड़कनों की मुलाकात थी उस रात।

तेरी पीठ पर जब फिसली मेरी उँगलियाँ,
तो तू सिहर गई थी, मैं थम गया था।
तेरी गर्दन की कोमलता में
जैसे कोई रूह बस गई थी,
और मैं उसमें खो गया था।

तेरी बाहों की गिरफ़्त में
जैसे पूरी कायनात सिमट आई थी।
जब तूने मेरा नाम लिया धीमे से,
तो सारा वजूद तुझमें खो गया था।

हमने रातों को अपनी चादर बनाई,
और लिपट गए उन ख्वाबों में जो अधूरे थे।
तेरे होंठों की नमी, मेरी साँसों की गर्मी,
वो पल जैसे अमर हो गए थे।

तेरे साथ बीते हर लम्हे ने
मुझे नया अर्थ दिया इश्क़ का।
न वो महज़ शरीर का संग था,
बल्कि आत्माओं की गहराइयों का संग था।

तू सिर्फ जिस्म नहीं थी,
तू वो भावना थी, जो हर रात मुझे जगाती थी।
तेरे बिना कुछ भी अधूरा लगता था,
जैसे कविता बिना तुक के, या राग बिना सुर के।

हमने प्रेम किया,
जैसे दो अग्नियाँ मिलती हैं आकाश में।
हमने जिया वो लम्हा,
जो किसी और ने शायद न जिया हो संसार में।

तेरे जाने के बाद भी
तेरी खुशबू मेरी चादर में रह गई।
तेरे स्पर्श की छाप
अब भी मेरी रूह में महक रही है।

और मैं हर रात
तेरी कल्पना में समा जाता हूँ।
तेरे होने का एहसास
मेरे तन्हा जिस्म में फिर से जाग जाता है।




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