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शीर्षक: "चुप्पियों में बसी बात"
रात गहरी थी,
चाँद धीमे-धीमे बादलों के आँचल में छुप रहा था।
कमरे की खामोशी में सिर्फ़ दो दिलों की धड़कनें थीं,
जैसे कोई अनकही दास्ताँ हर धड़कन में बुन रही हो।
तेरी साँसें मेरे गले के पास से गुजरतीं,
तो जैसे पूरे जिस्म में कोई कंपन दौड़ जाती।
वो तेरे उँगलियों का धीरे-धीरे मेरे कंधों पर फिरना,
जैसे कोई नज़्म मेरी त्वचा पर लिखी जा रही हो।
तेरी आँखों की भाषा मैं अब पढ़ना सीख गया हूँ,
उनमें कभी सवाल होते हैं, कभी इज़ाज़त।
और जब वो चुप हो जाती हैं,
तो समझ जाता हूँ — अब लफ्ज़ नहीं, सिर्फ़ एहसास बोलेंगे।
तेरा मेरे करीब आना,
मेरे होंठों से बिना कहे सबकुछ कह जाना,
तेरे बालों की खुशबू में डूबकर,
मैं ज़िन्दगी को नए मायनों में महसूस करता हूँ।
वो पल जब तू मेरे सीने पर सर रखती है,
तो लगता है पूरी कायनात वहीं थम गई हो।
तेरे नर्म होठों की छुअन में,
एक नशा है, जो हर रात मुझे दीवाना बना देता है।
हमारी रज़ामंदी, हमारी ख़ामोशी,
ये सब एक दूसरे को समझने का हिस्सा बन चुके हैं।
ना ज़रूरत होती है कहने की,
ना किसी रीत की— बस दो जिस्म, एक रूह, और एक गहरा एहसास।
तेरा हर छूना, हर लिपटना,
जैसे मेरी अधूरी दुआओं की ताबीर बन गया है।
तेरी आँखों के कोरों से बहती हल्की सी शरारत,
और उस शरारत में छुपी मासूम सी आग—
मुझे हर बार एक नई दुनिया में ले जाती है।
हम जब एक-दूजे में खो जाते हैं,
तो समय, धरती, आकाश सब रुक जाते हैं।
उस एक पल में हम केवल प्रेम नहीं करते—
हम खुद को, एक-दूसरे को,
और उस अनाम रिश्ते को जीते हैं, जो नामों से परे है।
ये कोई वासना नहीं,
ये आत्मा की वो ज़रूरत है जो शरीर के रास्ते इज़हार करती है।
ये प्रेम का वो रूप है,
जो न सिखाया जाता है, न बताया—
बस महसूस किया जाता है,
तेरी धड़कनों के साथ, मेरी साँसों के बीच।
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