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Post-04 Emily Willis
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"अनकही अनुभूतियाँ"
जिंदगी की शाम में जब धूप कुछ मद्धम सी लगती है,
तब मन की खिड़कियों से पुरानी यादें झाँकने लगती हैं।
धुँधली तस्वीरों में कैद हँसी, आँसू,
कुछ अधूरी कहानियाँ फिर से ताज़ा होने लगती हैं।
तुम्हारे स्पर्श की गर्मी अब भी
इन उँगलियों की पोरों में सजीव है,
वो अल्फ़ाज़ जो अधर तक आकर
वापस लौट जाते थे, अब चुभने लगे हैं।
क्या यही प्रेम है?
या यह कोई आदत थी,
जो वक्त के साथ शरीर में बस गई,
जैसे कोई पुराना घाव जो भरकर भी टीसता है।
तुम्हारी ख़ामोशी में भी शोर था,
और मेरी बातों में सन्नाटा।
दोनों ने कोशिशें की,
पर रिश्तों में अक्सर कोशिशें हार जाती हैं।
रात के सन्नाटे में जब नींद नहीं आती,
तो शब्द भी विद्रोह कर बैठते हैं।
कलम चलती है, पर दिल कांपता है,
हर स्याही की बूँद में एक याद रिसती है।
तुम्हारा वो “मैं ठीक हूँ”,
कितना झूठा था, अब समझ आता है।
और मेरा “मैं भी”,
एक ढाल थी, दर्द को छुपाने की।
शरीर तो पास थे,
पर आत्माएँ अनजान रहीं।
हमने साथ तो निभाया,
पर साथ जी न सके।
समय की धूप में रिश्ते झुलसते हैं,
कुछ जल जाते हैं, कुछ राख बन जाते हैं,
और कुछ...
बस दिल की दराज़ों में रखे रह जाते हैं —
साँसों की तरह, अनदेखे, अनछुए।
वो प्रेम जो किताबों में पढ़ा था,
वो जादू कहाँ था हमारे बीच?
या शायद था भी,
पर रोज़मर्रा की धूल में ढँक गया।
अब जब तन्हाई दोस्त बन गई है,
तब समझ आता है —
कि अधूरे रिश्ते भी पूरे लग सकते हैं,
अगर दिल उन्हें मंज़ूरी दे दे।
हर रिश्ता शादी नहीं होता,
हर स्पर्श पवित्र नहीं होता,
पर जो सच्चा होता है,
वो वक़्त के पार भी ज़िंदा रहता है।
हमने खोया बहुत कुछ,
पर पाया भी तो उतना ही।
तुम्हारी मुस्कान की एक झलक,
आज भी मेरी सबसे कीमती थाती है।
अब तुम्हारे बिना भी जी लेते हैं,
पर तुम्हारी कमी के साथ।
जैसे कोई गीत जिसकी धुन अधूरी हो,
पर वो फिर भी दिल को छू जाता है।
शब्दों से इश्क़ किया था मैंने,
और तुमसे भी।
शायद अब भी करता हूँ,
पर अब वो प्रेम शांत है —
ना जलता है, ना बुझता है, बस रहता है।
ये कविता नहीं,
मेरे अधूरे प्रेम की आत्मकथा है।
जो हर उस व्यक्ति के लिए है
जिसने कभी पूरी कोशिश की
पर फिर भी अधूरा रह गया।
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